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यमुनोत्री मंदिर यात्रा गाइड – इतिहास, महत्व और दर्शन

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में, बंदरपूँछ पर्वत की पश्चिमी ढलानों पर, समुद्र तल से लगभग 10,800 फीट (3,293 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम चारधाम यात्रा का प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह वह दिव्य स्थान है जहाँ भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी, यमुना, का उद्गम होता है। यमुनोत्री की यात्रा को न केवल गंगा के बाद पवित्र माना जाता है, बल्कि यह वह द्वार है जहाँ से यात्री अपनी आध्यात्मिक यात्रा का शुभारंभ करते हैं।

यमुनोत्री का दर्शन जीवन को शुद्ध करने, यम (मृत्यु के देवता) के भय से मुक्ति पाने और मोक्ष की राह पर अग्रसर होने के संकल्प को दर्शाता है। यह लेख यमुनोत्री के पौराणिक महत्व, ऋषि असित मुनि की कथा, मंदिर की स्थापना, और ट्रेकिंग मार्ग के रहस्यों का विस्तृत अन्वेषण करेगा।

यमुनोत्री मंदिर यात्रा गाइड – इतिहास, महत्व और दर्शन
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यमुनोत्री का पौराणिक आधार: सूर्य पुत्री और यम की बहन

यमुना नदी का पौराणिक महत्व केवल उसकी पवित्रता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सूर्य देव और मृत्यु के देवता यमराज से सीधे जुड़ा हुआ है।

यम-यमुना का दिव्य संबंध

  • सूर्य पुत्री: यमुना को सूर्य देव (विवस्वान) और उनकी पत्नी संज्ञा (सरन्यू) की पुत्री माना जाता है। इस कारण उन्हें यमी या सूर्यजा भी कहा जाता है।
  • यमराज की बहन: यमुना मृत्यु के देवता यमराज की जुड़वां बहन हैं। यह संबंध यमुनोत्री को अद्वितीय आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
  • भाई-बहन का स्नेह: पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने अपनी बहन यमुना को यह वचन दिया था कि जो कोई भी व्यक्ति यमुना के पवित्र जल में स्नान करेगा, उसे यमलोक में किसी भी प्रकार की यातना से मुक्ति मिल जाएगी। यह विशेष वचन यमुनोत्री की यात्रा को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति का प्रतीक बनाता है।
  • यमा द्वितीया (भाई दूज): यह पर्व यम और यमुना के प्रेम का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने गए थे, और इसलिए इस दिन यमुना में स्नान करने का विशेष महत्व है। इसी दिन शीतकाल के लिए यमुनोत्री धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
यमराज और उनकी बहन यमुना

ऋषि असित मुनि की अटूट भक्ति

यमुनोत्री धाम की स्थापना से एक और महत्वपूर्ण कथा जुड़ी है, जो ऋषि असित मुनि से संबंधित है।

  • गंगा-यमुना का संकल्प: मान्यता है कि ऋषि असित मुनि यहीं यमुनोत्री में निवास करते थे और प्रतिदिन गंगा और यमुना दोनों में स्नान करते थे। उन्होंने जीवन भर इस कठिन नियम का पालन किया।
  • यमुना का अवतरण: जब ऋषि वृद्धावस्था के कारण अत्यंत कमजोर हो गए और गंगा तक जाने में असमर्थ हो गए, तब देवी गंगा और यमुना ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। ऋषि की सुविधा के लिए, देवी यमुना स्वयं एक धारा के रूप में उनके निवास के निकट प्रकट हुईं।
  • स्थान का महत्व: यह कथा तीर्थयात्रियों को यह संदेश देती है कि सच्ची भक्ति में कोई भी भौगोलिक बाधा मायने नहीं रखती।
ऋषि असित मुनि

यमुनोत्री मंदिर की स्थापना और संरचना

यमुनोत्री में देवी यमुना को समर्पित मंदिर यमुना नदी के वामांग (बाएँ तट) पर स्थित है।

मंदिर का निर्माण

  • आधुनिक स्वरूप: मूल मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में जयपुर की महारानी गुलेरिया ने करवाया था। हालांकि, यह मंदिर कई बार प्राकृतिक आपदाओं (भूकंप और हिमस्खलन) के कारण क्षतिग्रस्त हो चुका है, जिसका कई बार पुनर्निर्माण किया गया है। वर्तमान संरचना आधुनिक है।
  • गर्भगृह: मंदिर के भीतर, काले संगमरमर से बनी देवी यमुना की मूर्ति स्थापित है, जिनकी पूजा की जाती है।
  • उद्गम स्थल: मंदिर का वास्तविक उद्गम स्थल, चम्पासर ग्लेशियर, यहाँ से लगभग 1 कि.मी. ऊपर है। यह अत्यंत दुर्गम है, इसलिए अधिकांश भक्त केवल मंदिर में ही दर्शन करते हैं।
चम्पासर ग्लेशियर

तप्त कुंड और दिव्य भोग

यमुनोत्री धाम की सबसे अनूठी विशेषता यहाँ के गर्म पानी के झरने (Tapt Kunds) हैं, जो घने हिमालय के बीच प्राकृतिक रूप से गर्म पानी प्रदान करते हैं:

  1. सूर्य कुंड (Surya Kund): यह सबसे महत्वपूर्ण कुंड है। सूर्य पुत्री यमुना से संबंधित होने के कारण, इस कुंड को सूर्य देव को समर्पित माना जाता है। इसका पानी इतना गर्म होता है कि इसमें सीधे हाथ डालना मुश्किल है।
  2. दिव्य भोग: श्रद्धालु इस कुंड के गर्म पानी का उपयोग प्रसाद (भोग) बनाने के लिए करते हैं। वे चावल और आलू को एक पतले कपड़े में बाँधकर इस कुंड में डुबोते हैं। कुछ ही मिनटों में, प्रसाद पक जाता है। इस पके हुए चावल को प्रसाद के रूप में देवी को अर्पित किया जाता है और फिर भक्तों के बीच बाँटा जाता है। यह प्रक्रिया यमुनोत्री की यात्रा का एक आवश्यक और अद्भुत हिस्सा है।
  3. गौरी कुंड: यह स्नान के लिए उपयोग किया जाने वाला मुख्य कुंड है, जहाँ पानी का तापमान सूर्य कुंड से कम होता है, लेकिन फिर भी आरामदायक गर्म होता है।

यमुनोत्री यात्रा: ट्रेकिंग मार्ग और कैसे पहुँचें

यमुनोत्री धाम चारधाम यात्रा का सबसे कठिन प्रारंभिक ट्रेक प्रदान करता है, जिसे करने के लिए शारीरिक दृढ़ता और तैयारी की आवश्यकता होती है।

पहला चरण: आधार शिविर जानकीचट्टी तक

  • नजदीकी एयरपोर्ट/रेलवे: देहरादून/ऋषिकेश।
  • सड़क मार्ग: ऋषिकेश/हरिद्वार से यात्रा जानकीचट्टी तक सड़क मार्ग से पूरी की जाती है।
    • मार्ग: ऋषिकेश – नरेंद्रनगर – टिहरी – धरासू बैंड – बड़कोट – हनुमानचट्टी – जानकीचट्टी।
    • डेटा पॉइंट: ऋषिकेश से जानकीचट्टी की दूरी लगभग 220-230 कि.मी. है।

दूसरा चरण: जानकीचट्टी से मंदिर तक ट्रेक

  • ट्रेकिंग दूरी: जानकीचट्टी से यमुनोत्री मंदिर तक की ट्रेकिंग दूरी लगभग 6 किलोमीटर है।
  • कठिनाई: यह ट्रेक काफी खड़ी चढ़ाई (Steep Ascent) वाला है, और इस 6 कि.मी. के मार्ग को पूरा करने में सामान्यतः 3 से 5 घंटे लगते हैं।
  • विकल्प: पैदल ट्रेकिंग के अलावा, यात्रियों के लिए निम्नलिखित सेवाएँ उपलब्ध हैं:
    • पिट्ठू, कंडी और पालकी: बुजुर्गों, बच्चों और शारीरिक रूप से कमजोर भक्तों के लिए पालकी (Palki) सबसे लोकप्रिय विकल्प है।
    • घोड़े और खच्चर: ये भी जानकीचट्टी से उपलब्ध होते हैं।
  • पुराना मार्ग (हनुमानचट्टी): पहले ट्रेक हनुमानचट्टी से शुरू होता था (लगभग 13 कि.मी.), लेकिन अब सड़क मार्ग जानकीचट्टी तक बन जाने के कारण यह दूरी कम हो गई है।

शीतकालीन प्रवास: खरसाली गाँव में देवी यमुना का निवास

यमुनोत्री धाम के कपाट हर साल भैया दूज (यम द्वितीया) के शुभ अवसर पर विधि-विधान से बंद कर दिए जाते हैं। यह परंपरा भाई-बहन के दिव्य संबंध को दर्शाती है।

  • कपाट बंदी का अनुष्ठान: कपाट बंद होने के बाद, देवी यमुना की उत्सव डोली को सेना के बैंड और पुजारियों के साथ उनके शीतकालीन निवास स्थल की ओर ले जाया जाता है।
  • शीतकालीन निवास: यमुना की शीतकालीन पूजा खरसाली गाँव में स्थित सोमेश्वर देवता मंदिर में होती है। खरसाली गाँव को यमराज और शनिदेव का मूल निवास स्थान भी माना जाता है।
  • परंपरा: अगले छह महीने तक भक्त इसी गाँव में माता यमुना के दर्शन और पूजा-अर्चना कर पाते हैं, जब तक कि अक्षय तृतीया पर मुख्य कपाट पुनः नहीं खुल जाते।

यमुनोत्री के आस-पास दर्शनीय स्थल

यमुनोत्री के रास्ते में कई धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य के स्थल हैं:

  1. हनुमानचट्टी (Hanuman Chatti): यह जानकीचट्टी से पहले स्थित है और ट्रेकिंग का पुराना शुरुआती बिंदु था। यह यमुना और हनुमान गंगा नदियों के संगम के लिए प्रसिद्ध है।
  2. सप्तऋषि कुंड (Saptarishi Kund): यह यमुना नदी का वास्तविक स्रोत माना जाता है, जो चम्पासर ग्लेशियर के पास स्थित है। यह एक उच्च ऊँचाई (15,000 फीट) वाला, दुर्गम ट्रेक है और केवल अनुभवी ट्रेकर्स के लिए उपयुक्त है।
  3. बड़कोट (Barkot): यह यमुना नदी के तट पर स्थित एक महत्वपूर्ण शहर है और यात्रा के दौरान एक प्रमुख पड़ाव है, जहाँ ठहरने और भोजन की अच्छी व्यवस्थाएँ उपलब्ध हैं।

Frequently Asked Questions (FAQ’s)

यमुनोत्री मंदिर कहाँ स्थित है?

यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में, समुद्र तल से लगभग 3,293 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह माँ यमुना के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।

यमुनोत्री मंदिर का धार्मिक महत्व क्या है?

यहाँ माँ यमुना की पूजा की जाती है, जो पापों का नाश करने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं। यह चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है।

यमुनोत्री मंदिर का इतिहास क्या है?

मंदिर का निर्माण गढ़वाल के राजा प्रताप शाह ने 19वीं शताब्दी में करवाया था। इसके पीछे पौराणिक मान्यता है कि यहाँ अष्ट ऋषि असित मुनि ने तपस्या की थी।

यमुनोत्री मंदिर कब खुलता और बंद होता है?

मंदिर हर वर्ष अक्षय तृतीया के दिन खुलता है और दीवाली के बाद कपाट बंद हो जाते हैं। सर्दियों में माँ यमुना की पूजा खरसाली गाँव में की जाती है।

यमुनोत्री यात्रा का सबसे अच्छा समय कौन-सा है?

मई से जून और सितंबर से अक्टूबर तक का समय यात्रा के लिए उपयुक्त होता है, जब मौसम खुला और रास्ते सुगम रहते हैं।

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